Israel-Iran दोनों देशों पर पूरी दुनिया की निगाह टिकी हुई है क्योंकि अगर इन दोनों देशों में युद्ध छिड़ता है तो पूरा विश्व इस अनचाहे युद्ध की लपेट में आ सकता है। अमेरिका, फ्रांस, इंग्लैंड और भारत पूरी कोशिश करने में लगे हुए के इन दोनों देशों के बीच युद्ध ना हो।
युद्ध अच्छाई के लिए लड़ा गया हो या बुराई के लिए, नुकसान आम जनता का होता है। दुनिया के दो हिस्सों में पिछले एक- दो सालों से युद्ध चल रहा है, जिससे हजारों लोग बेघर हो गए हैं। 50,000 से ज्यादा लोग अपनी अनचाही मौत प्राप्त कर चूके हैं।
आइए आज के इस लेख में हम जानेंगें इजरायल, Iran, गाजा, फिलिस्तीन, लेबनान, तुर्की, इराक और यमन में पिछले 104 सालों से यह शांति क्यों है
1. मध्य पूर्व की अशांति की शुरुआत:
साल 1920 में ब्रिटेन के एक अखबार में छपा था कि अरब देशों पर ऐसी व्यवस्था थोपने की कोशिश हो रही है, जिसकी उन्होंने कभी मांग नहीं की थी।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन और फ्रांस ने इस क्षेत्र का बंटवारा किया, जिससे असंतोष और संघर्ष की नींव पड़ी।
104 साल बीतने के बाद भी, मध्य पूर्व में शांति नहीं है, और आज भी यहां संघर्ष, युद्ध और हिंसा का माहौल है।
Israel-Iran दोनों ही परमाणु शक्ति हैं। इस क्षेत्र में, Israel-Iran दोनों में समझौता होना इस क्षेत्र की शांति के लिए जरूरी है। ताजा जानकारी के अनुसार इजराइल- ईरान में कभी भी जंग हो सकती है। अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस और भारत अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं कि इजराइल और Iran में किसी भी तरह की जंग ना हो। पूरी दुनिया की निगाहें Israel-Iran को देख रही हैं। क्योंकि अगर इजराइल और Iran के बीच युद्ध होता है तो इस क्षेत्र में, या यूं कह लीजिए तीसरे विश्व युद्ध का यह प्रमुख कारण बनने वाला है।
2. Israel-Iran संघर्ष और हालिया घटनाएं
इजराइल ने 26 अक्तूबर 2024 को ईरान पर बड़े पैमाने पर हमले किए, जो लगभग 3 घंटे तक चले। इस हमले में 100 से ज्यादा फाइटर जेट्स शामिल थे।
यह हमले 1 अक्तूबर 2024 को ईरान द्वारा इज़राइल पर दागे गए 200 मिसाइलों का जवाब थे।
इज़राइल ने इस ऑपरेशन को “पछतावे का दिन” नाम दिया है। इसके साथ ही इज़राइल ने लेबनान और गाजा में भी हमले किए।
इजराइल और Iran का यह संघर्ष एक लंबे समय से चल रहे क्षेत्रीय और राजनीतिक विवाद का हिस्सा है, जिसमें तेल, सीमाओं, और धार्मिक मतभेदों का गहरा योगदान है।
3. अंग्रेजों का बंटवारा और विवाद की जड़ें:
मध्य पूर्व का आज का नक्शा 1916 के ‘साइकस पिकाट’ समझौते से बना था, जिसमें ब्रिटेन और फ्रांस ने अपनी ताकत और हितों के अनुसार अरब देशों का बंटवारा किया।
ब्रिटेन को इराक और सऊदी अरब का दक्षिणी हिस्सा मिला, जबकि फ्रांस को लेबनान और सीरिया पर नियंत्रण दिया गया।
फिलिस्तीन को अंतर्राष्ट्रीय प्रशासन के तहत रखा गया, जिससे यहूदियों और अरबों के बीच विवाद का बीज बोया गया।
इस बंटवारे में कई इलाकों की सीमाएं कृत्रिम रूप से तय की गईं, जिनमें वहां की जातीय और सांस्कृतिक विविधताओं को नजरअंदाज किया गया। इससे आज तक संघर्ष की स्थिति बनी हुई है।
4. तेल की जंग और अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप:
मिडल ईस्ट में तेल भंडारों की खोज ने इन संघर्षों को और जटिल बना दिया। 1927 में इराक और सऊदी अरब के पूर्वी बॉर्डर पर तेल के भंडार मिले।
तेल की दौलत के कारण अमेरिका, ब्रिटेन और रूस जैसी वैश्विक ताकतों ने मध्य पूर्व में अपना हस्तक्षेप बढ़ाया। अमेरिका ने यहां कई बार सैन्य हस्तक्षेप किया, जिसमें इराक, कुवैत और ईरान जैसे देशों में राजनीतिक अस्थिरता और संघर्ष शामिल रहे।
Iran में मोहम्मद मोसेदेक की सरकार ने 1951 में तेल के राष्ट्रीयकरण की घोषणा की, जिसके बाद ब्रिटेन और अमेरिका ने वहां तख्ता पलट करवाया और अपनी कठपुतली रेजा पहलवी को सत्ता में बैठाया। इस घटना ने ईरान में लंबे समय तक संघर्ष को बढ़ावा दिया।
5. कुर्दों का संघर्ष और विवादित सीमाएं:
मिडल ईस्ट के बंटवारे में कुर्दों के लिए कोई अलग देश नहीं बनाया गया। उन्हें तुर्की, इराक, Iran, और सीरिया में विभाजित कर दिया गया।
कुर्दों की अपनी अलग संस्कृति और भाषा होने के बावजूद उन्हें इन देशों की सीमाओं में शामिल कर अल्पसंख्यक बना दिया गया।
तब से कुर्द अलग देश की मांग करते आ रहे हैं, जिसके कारण तुर्की और ईरान में बार-बार हिंसा और संघर्ष की घटनाएं होती रही हैं।
6. कुवैत और इराक का संघर्ष:
ब्रिटेन के बंटवारे ने कुवैत को इराक से अलग कर दिया, जिससे वर्षों बाद एक और युद्ध की स्थिति पैदा हुई।
1990 में इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन ने कुवैत पर हमला किया, यह दावा करते हुए कि कुवैत इराक का हिस्सा है।
इस हमले के पीछे मुख्य कारण कुवैत के तेल भंडारों पर नियंत्रण पाना था। अमेरिका ने इराक पर हमला कर कुवैत को आजाद करवाया, लेकिन इसने मध्य पूर्व में संघर्ष को और बढ़ा दिया।
7. फिलिस्तीन और इजराइल का संघर्ष:
ब्रिटिश विदेश सचिव आर्थर जेम्स बालफोर ने 1917 में यहूदियों के लिए फिलिस्तीन में एक यहूदी राष्ट्र बनाने का वादा किया था। इसके बाद यहूदी फिलिस्तीन में बसने लगे।
1948 में इजराइल ने खुद को एक संप्रभु राष्ट्र घोषित कर दिया, जिसके बाद अरब देशों और इजराइल के बीच संघर्ष शुरू हो गया।
फिलिस्तीनियों ने इसे अपने अधिकारों का हनन समझा, जिससे अरब-इजराइल युद्धों की शुरुआत हुई, जो आज भी जारी है। यहूदी और फिलिस्तीनी समुदायों के बीच यह विवाद आज मध्य पूर्व में सबसे बड़े संघर्षों में से एक है।
8. शिया-सुन्नी विवाद और सत्ता संघर्ष:
मिडिल ईस्ट में शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच धार्मिक विवाद भी संघर्ष का मुख्य कारण है।
यमन, सीरिया, और इराक जैसे देशों में शिया-सुन्नी संघर्ष के कारण कई वर्षों से गृहयुद्ध चल रहा है।
सीरिया में अल्पसंख्यक शिया शासन कर रहे हैं, जबकि बहुसंख्यक सुन्नी विद्रोही उनके खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं।
यमन में शिया हूती विद्रोही और सुन्नी सरकार के बीच संघर्ष चल रहा है, जिसमें सऊदी अरब और ईरान भी शामिल हैं। इस संघर्ष ने लाखों लोगों की जान ली है और लाखों लोगों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया है।
9. तेल और वैश्विक शक्तियों का खेल:
मिडल ईस्ट की सीमा बनाने के बाद जब यहां तेल के भंडार मिले, तब से यह क्षेत्र संघर्ष का केंद्र बन गया।
मिडल ईस्ट में दुनिया का लगभग 50% तेल भंडार है, इसलिए वैश्विक शक्तियों जैसे अमेरिका, रूस और ब्रिटेन ने यहां पर अपना दबदबा बनाए रखने की कोशिश की।
कुवैत और इराक के बीच तेल के लिए लड़े गए युद्ध ने इस संघर्ष को और बढ़ावा दिया।
1990 में सद्दाम हुसैन ने कुवैत पर हमला किया और दुनिया के 25% तेल भंडार पर कब्जा कर लिया। इसके जवाब में अमेरिका ने इराक पर हमला किया और कुवैत को आजाद करवाया।
निष्कर्ष:
मध्य पूर्व की आज की स्थिति की जड़ें 104 साल पहले ब्रिटिश और फ्रांसीसी नीतियों में निहित हैं। तेल के लिए संघर्ष, कुर्दों का विवाद, शिया-सुन्नी मतभेद, और यहूदी-फिलिस्तीनी विवाद ने इस क्षेत्र में अशांति और हिंसा की स्थिति को जन्म दिया है। हालांकि ब्रिटेन और फ्रांस ने मिडल ईस्ट को अपने हिसाब से बांटा, लेकिन इसने आज तक वहां स्थिरता लाने में नाकामी हासिल की है।
पिछले एक महीने से Israel-Iran के बीच टेंशन लगातार बढ़ रही है। पहले Iran ने इजराइल पर 200 मिसाइलों से हमला किया था, उसके बदले में इजराइल भी Iran पर भयंकर हमला कर चुका है। अब अगर Iran दोबारा से पलट कर इजराइल पर वार करता है तो Israel-Iran के कारण तीसरा विश्व युद्ध होना संभावित है।