किसान और पुलिस के बीच तीन दिन से oil pipeline के मुद्दे पर टकराव
हरियाणा में oil pipeline विवाद के मुद्दे पर सोनीपत जिले के गोहाना इलाके में पिछले तीन दिनों से किसान और पुलिस के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है। किसान अपने खेतों में बिछाई जा रही इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की oil pipeline का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि उन्हें जमीन का उचित मुआवजा नहीं मिल रहा है। किसानों की मांग है कि उन्हें 10 लाख रुपये प्रति एकड़ मुआवजा दिया जाए, जबकि उन्हें केवल 4 लाख रुपये का प्रस्ताव दिया जा रहा है।
विरोध प्रदर्शन की शुरुआत और बढ़ता तनाव
किसानों ने 3 अगस्त से इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन शुरू किया था। 5 नवंबर को प्रशासन ने जबरन किसानों को हटाकर oil pipeline बिछाने का काम शुरू किया, जिससे किसान भड़क उठे। इसके बाद किसानों ने oil pipeline के काम को रोकने की कोशिश की और 6 नवंबर को पोकलेन मशीन पर चढ़ गए। पुलिस ने हस्तक्षेप करते हुए 47 किसानों को हिरासत में ले लिया।
महिलाओं की भी भागीदारी: हरियाणा में Oil Pipeline विवाद
प्रदर्शन के दौरान महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। पुलिस और महिलाओं के बीच कई जगहों पर झड़पें हुईं, जिसके वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। 7 नवंबर को कोहला गांव में किसानों ने महापंचायत बुलाई है, जिसमें आसपास के जिलों से भी किसान शामिल होंगे।
प्रशासन और पुलिस की स्थिति
गोहाना के एसपी ऋषिकांत ने बताया कि oil pipeline बिछाने के लिए इंडियन ऑयल ने पुलिस सुरक्षा की मांग की थी। इसी के तहत पुलिस ड्यूटी मजिस्ट्रेट के निर्देश पर कार्यवाही कर रही है। पुलिस हर परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार है और इलाके में लगातार सतर्कता बरत रही है।
किसान नेताओं की भूमिका और महापंचायत की तैयारी
किसान यूनियन के नेता रवि आजाद ने पुलिस पर किसानों के साथ दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है और कहा है कि वे अपने हक के लिए लड़ते रहेंगे। उन्होंने संयुक्त किसान मोर्चा से भी इस आंदोलन का संज्ञान लेने की अपील की है। महापंचायत में आगे की रणनीति पर विचार किया जाएगा, जिसमें मुआवजे की बढ़ोतरी की मांग को प्रमुखता दी जाएगी।
किसानों और सरकार के बीच पराली जलाने को लेकर टकराव
हरियाणा में किसानों और सरकार के बीच पराली जलाने को लेकर टकराव बढ़ता जा रहा है। राज्य सरकार ने पराली जलाने पर रोक के बावजूद कई किसानों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। किसानों का कहना है कि उनके पास पराली का सही ढंग से निपटारा करने का कोई व्यावहारिक विकल्प नहीं है, और सरकार द्वारा दिए गए समाधान अपर्याप्त हैं। दूसरी ओर, सरकार पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण को लेकर सख्त रुख अपना रही है और किसानों को वैकल्पिक उपाय अपनाने पर जोर दे रही है।
सरकार का दावा है कि उसने किसानों को मशीनरी और वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाई है, लेकिन किसान इसे नाकाफी मानते हैं। किसानों का कहना है कि पराली न जलाने पर उन्हें आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है, और सरकार उनके हितों को ध्यान में रखकर ठोस कदम उठाए। इस मुद्दे ने राज्य में एक गंभीर विवाद का रूप ले लिया है, जिसमें पर्यावरण और किसानों की जीविका के बीच संतुलन ढूंढना चुनौती बन गया है।
किसानों ने धमकी दी है कि अगर उनके साथियों से एफआईआर कैंसल नहीं की गई तो वो फिर से एक बड़ा आंदोलन करने के लिए मजबूर हो जाएंगे पराली को लेकर अभी सरकार और किसानों में ठनी हुई थी की oil pipeline ने आग में घी डालने का काम कर दिया है। सरकार की बातचीत जारी है।
निष्कर्ष
oil pipeline के विरोध में किसानों का यह आंदोलन अब तेजी पकड़ रहा है। आने वाले दिनों में इस टकराव के और बढ़ने की संभावना है। प्रशासन और किसानों के बीच वार्ता की कोई ठोस पहल नहीं हो रही, जिससे हालात और बिगड़ सकते हैं।